स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद-19)




स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद-19)
संविधान नागरिकों को 6 प्रकार की सवतत्रताओं का आश्वासन देता है। यह स्वतंत्रताएं हैं भाषण और अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता, बिना शस्त्र के शांतिपूर्वक एकत्र होनो की स्वतंत्रता, समुदाय या संघ बनाने की स्वंत्रतता,भारत से समस्त क्षेत्र में स्वतंत्रतापूर्व के घूमने- फिरने की स्वतंत्रता, देश के किसी विभाग में निवास करेन तथा बसने काअधिकार, कोई वृत्ति, उपजीविका, प्यापार या कारोबार करने की अर्जित करने व उसे बेचने की स्वतंत्रता प्रदान की गई परंतु 44 वें संशोधन द्वारा इस स्वतंत्रता को संविधान से हटा दिया गया।
भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक नागरिक अपने विचार, मानयताएं व दृढ़ विभावकताएं स्वतंत्रतापूर्वक, तथा बिना पूर्वआग्रह के मौखिक, लिखित,मुद्रित,तस्वीरों व अन्य रुपों में व्यक्त कर सकता है। ज्ञात रह कि यह स्वतंत्रता अबाध नहीं है तथा इसअधिकार के प्रयोग पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते है। यह प्रतिबंध देश की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों सार्वजनिक व्यवसथा, शिष्टाचार तथा नैतिकता, न्यायालय के अपमान, मानहानि या अपराध के लिए उकसाने पर भारत की प्रभूसत्ता व अखंडता के हित में लगाए जा सकते है।

वाक्य स्वतंत्रता- अधिकारः-
         वाक्य स्वातंत्रय आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण- (1) सभी नागरिकों को-
(क)   वाक्य- सवातंत्रता और अभिव्यक्ति- स्वातंत्रता का,
(ख)   शातिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग)    संगम या संघ [या सहकारी समितिया] बनाने का,
(घ)    भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
(ङ)    भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का,
(च)    [--------------------------------------------------------------------------------]
(छ)   कोई वृति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का
अधिकार होगा।
वाक्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई व्याख्या के आलोक में प्रेस की स्वतंत्रता का जो अभिप्राय स्पष्ट होता है उसे डॉ. नंद किशोर त्रिखा ने अपनी पुस्तक प्रेस विधि में इस प्रकार प्रस्तुत किया है-
   हर नागरिक, उन निर्बधनों को छोड़कर जिनकी अनुमति संविधान देता है, निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग करने को स्वतंत्रत है-
Ø  समाचारों और विचारों का मुद्रण और प्रकाशन
Ø  मुद्रित समाग्री का लोगो में प्रसारण
Ø  सार्वजनिक मामलों पर खुली बहस।
Ø  लोक सेवगकों, सरकार और सार्वजनिक प्राधिकरणों के कार्यो की समीक्षा और आलोचना।
Ø  सरकार के एकाधिकारी नियंत्रण से मुक्त रहकर विभिन्न और परस्पर विरोधी सूत्रों से तथा स्पर्ध्दा के आधार पर तथ्य व सूचनाएं एकत्रित करना।
Ø  प्रकाशन सामग्री का चयन, पत्र के प्रसार और मूल निर्धारण जैसी गतिविधियां और कार्य सरकारी निर्देशन से मुक्त रहकर अपनी योजना के अनुसार करना।
Ø  पत्रकारों सहित सब कर्मचारियों का किसी बाहरी निर्देशन या नियंत्रण के बिना चयन करना।
Ø  ऐसे किसी भी विशेष कर से मुक्ति जिसके परिणामस्वरुप पत्र की प्रसार संख्या सीमित होती हो।
Ø  सरकारी विज्ञापनों समेत किसी विज्ञापन को छापने से नकार करना।
Ø  प्रेस की संवतंत्रता में पुस्तिकाएं(पैमफलेट),पत्रक(लीफलेट) और सूचना व विचारों के सवाहक हर प्रकार के प्रकाशन शामिल हैं।
किंतु
Ø  औघोगिक संबंधों, कर्मचारियों की सेवा शर्तो, वेतनमान काम के घंटों,गेच्युटी,भविष्य निधि(प्राविडेण्ट फण्ड) आदि की अदायगी, एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक प्यापारिक प्रवृत्तियों को रोकने के कानूनों आदि समान्य कानूनों से प्रेस को उन्मुक्ति प्राप्त नहीं है यदि ये उनके प्रति भेदभाव मूलक न हों।
Ø  वे सभी कर भी प्रेस पर लगये जा सकते हैजो औरों पर लगते है। किंतु,ऐसा कोई कर नहीं लगाया जा सकता है, जिसका उद्देश्य या परिणाम उस पर इतना बोझ डालता हो कि नए पत्र प्रारंभ न किए जा सकें या चालु पत्रों को जीवित रकने के लिए सरकार की सहायता लेने को बाध्य होना पड़े।
Ø  प्रेस, किसी अपराधिक कानून से किसी विशेष उन्मुक्ति का अथवा उसके विरुद्ध रक्षा का दावा नहीं कर सकता है बशर्ते इस कानून का उपयोग उसे दबाने, नियंत्रित करने या उसके प्रकाशन अथवा प्रसारण के अधिकार को कम करने के उद्देश्य से न किया जाए। 

वाक्य और अभिव्यक्ति स्वतंत्रयता पर निर्बन्धन के आधार-
       संविधान के अन्च्छेद 19(2) के अधीन उन विषयो का उल्लेख है जिनके आधार पर वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाये जा सकते है। वे विषय निम्नलिखित हैं-
1.       राज्य की सुरक्षा
2.       विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
3.       लोक व्यवस्था,
4.       शिष्टाचार या सदाचार
5.       न्यायालय या सदाचार
6.       मानहानि
7.       अपराध उद्दीपन,
8.       भारत की प्रभुता एवं अखण्डता।
1.       राज्य की सुरक्षा – राज्य की सुरक्षा के हित में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगया जा सकता है। राज्य की सुरक्षा लोक व्यवस्था के गम्भीर और गुरतर रुपों में बिगड़े स्वरुप की ओर संकेत करती है। जैसे- विद्रोह, राज्य के विरुद्ध युद्द छेड़ना, आंतरिक विक्षोभ आदि। अवैध सभा बलवा, हंगामा आदि जैसे लोक व्यवस्था तथा लोक सुरक्षा के साधारण भंगो को राज्य की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाला नहीं समक्षा जाएगा। ऐसी विचाराभिव्यक्ति या ऐसे प्रत्येक भाषण को, जो लोगो को हत्याजैसे अपराध करने के लिए उकसाते या प्रोत्साहित करते होंया राज्य को नष्टभ्रष्ट कर देने वाले प्रवृति के हों, दण्डनीय बनाया जा सकता है।
2.       विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध- वाक् एवं अभिव्यक्ति की संवतंत्रता पर युक्तियुक्त निबंधन का यह आधार संविधान अधिनियम 1951 द्वारा जोड़ा गया । विधेयक पर बहस के दौरान संसद में इस आधार की यह कहकर आलोचना की गई कि इस विधेयक का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है और इसका प्रयाग सरकार की वेधस नीति की समयक् आलोचना के विरुद्ध भई किया जा सकता है। किंतु सरकार ने संसद को आश्वस्त किया कि उद्देश्य किसी व्यक्ति को ऐसी अस्त्य या झूठी अफवाहें फैसाने से सकना है जिससे किसी विदेशी राज्य के साथ हमारे मैत्रीपूर्ण संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव संभावित हों।
3.       लोक व्यवस्था- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को दूर करने के उद्देश्य से निर्बन्धन के इस आधार को भी संविधान अधिनियम 1951 द्वारा जोड़ा गया। लोक व्यवल्सथा विस्तृत अर्थ वाली पद्वली है जिसमें लोकसुरक्षा भी सम्मिलित है। समाज में अशांति या विक्षोम उत्पन्न करने वाली बात लोक व्यवस्था के प्रतिकूल होती है। अवयवस्था फैलाने की प्रवृति रखने वाले लेखों और भाषणों पर सरकार पूर्व- अवरोध भई लगा सकती है। लोक व्यव्सथा बनाए रखने के लिए सरकार अग्रिम कार्यवाही भी कर सकती है। जैसे दणड प्रक्रिया संहिंता की धारा 144 लागू करके जुलूसों और सभाओं पर रोक लगाना।
4.       शिष्टाचार या सदाचार- लोक नैतिकता और शिष्टता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कथनों या प्रकाशनों को सरकार प्रतिबंधित कर सकती है। किंतु नैतिकता और शिष्टता की कसौटी को न तो संविधान में परिभाषित किया गया है और न ही किसी अधिनियम में। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 292 से 294 तक अश्लील भाषणों आदि को नैतिकता या शिष्टता के हित में रोक सकती है। भारतीय दण्ड संहिता में भी अश्लीला को न तो परिभाषित किया गया है और न ही उसकी कसौटी निर्धारित गी गई है।
5.       न्यायालय का अवमानना- यद्धपि न्यायालय अवमानना को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है किंतु न्यायलय अवमानना अधिनियम,1971 में धारा2 के अंतर्गत न्यायालय अवमामना को परिभाषित किया गया है। इसके अंतर्गत सिविल और आपराधिक दोनों प्रकार के अवमान सम्मिलित हैं जिसकी विधिक परिभाषा कानून में दी गी है। इस कानून का विस्तृत निवेचन इस पुस्तक में एक सवतंत्र पाठ के अंतर्गत किय गया है।
6.       मानहानि- किसी व्यक्ति की मानहानि करने पर वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
7.       अपराध उद्दिपन- वाक्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने वाले इस आधार को भी संविधान अधिनियम 1951 द्वारा अनुच्छेद 19(2) में जोड़ा गया। इसके अंतरर्गत भारत की अखण्डता और संप्रभूता पर प्रतिकूल प्रभाव वाले कथनों भाषणों को प्रतिबंधित रने का अधिकार एवं शक्ति राज्य को प्रदान की गई है।
8.       भारत की प्रभुता और अखण्डता- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निर्बन्धित करने वाले इस आधार को संविधान (सोलहवें संशोधन) अधिनियम,1963 द्वारा अनुच्छेद 19(2) में जोड़ा गया । इसके अंतरर्गत भारत की अखण्डता और संप्रभुता पर प्रतिकूल असर वाले कथनों भाषणों और प्रकाशनों को प्रतिबधित करने का प्रावधान है।
इस प्रकार अनुच्छेद 19(1)(क) अ अंतरगर्गत भारतीय नागरिकों को प्रदत्त वाक् और अभिव्यक्ति की सवतंत्रता अनुच्छेद 19(2) के अधिन हैं।  
किसी व्यव्साथा के साथ जुड़ी वाक्य-शक्ति करारोपण योग्य- केबिल के माध्यम से ग्राहकों के घरों में लगे हुए टी.वी. सेट्स उनके उपकरणों से जुड़े हुए हैं ताकि अपीलार्थियों द्वारा प्रासरित कार्यक्रमों को ग्राहक प्राप्त कर सकें। इस सेवा के लिए, प्रत्योक ग्राहक से प्रत्येक माह एक निश्चत राशि शुल्क के रुप में ली जाती है। यह उसका व्यापार तथा संसूचना की क्रियाकलाप, दोनों का अधिकार है अर्थात व्यापार और अभिव्यक्ति अनुच्छेद 19 के खण्ड (1) के उपखण्ड (छ) तथा (क) के अधिन अधिकार के व्यावसायिक भाग पर टैक्स लगाया जा सकता है। [ए. सुरेश बनाम तमिलनाडु राज्य, ए.आई.आर.1997 एस.सी 1989 : 1997 एस.सी.डब्ल्यू.1640]
बंद एवं हड़ताल- यह मूलभूत अधिकार नहीं है-  लोगों के मौलिक अधिकार समग्र रुप से अमुसेवी नहीं हो सकते, चाहे किसी व्यक्ति विशेष अथवा लोगों के किसी समूह विशेष मौलिक अधिकार का दावा हबो, इसिलिए, ऐसा कोई बंद का आह्वान अथवा बंद को लागु करने का अधिकार नहीं हो सकता, जो नागरिकों को स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप करे। [भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) वनाम भरत कुमार,1997 एस.सी. डब्लु.4147:1997(7) स्केल 21]
                                                                                                          
                                                                                               रत्नसेन भारती 
                                                                                          एम.फिल जनसंचार
                                                                महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविधालय वर्धा,महाराष्ट्र


ratnasen

मै भारत देश का एक जिम्मेदार नागरिक हूं. तमाम जिम्मेदारी को समझने की कोशिश कर रहा हूं. देश की सेवा के लिए पहले परिवार फिर समाज की सेवा करना चाहता हूं. इसी कड़ी में लगातार आगे बढ़ रहा हूं. बुद्ध को अपना आदर्श मानता हूं

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