भूमिका-
चुनाव की
घोषणा के बाद होने वाले वो सर्वे जिसमें वोटरों से पूछा जाता है कि आप किस-किस मुद्दा को लेकर वोट देंगे वैसे सर्वे को
ओपिनियल पोल कहते हैं। इस सर्वे में मुख्य रूप से सैंपल साइज पर जोर होता है।
जिसका जितना बड़ा सैंपल साइज होता है, उसके नतीजे उतने सही होने के करीब होते हैं। इसका सीधा सा मतलब
है कि जो जितनें अधिक लोगो से मिलेंगे उसका डाटा उतना ही सत्य के नजदीक जाता नजर
आएगा। अगर हम ओपेनियन पोल के इतिहास को देखे (विश्व और भारत का इतिहास निम्नलिखित
है।) तो शुरुआती दिनो में यह बहुत ही सटिक साबित हुआ है सन् 2004 के बाद से इसमें
बदलाव का असर दिखने लगा,उसके बाद से इसके उपर सत्यता की जांच को लेकर कई सवाल उठने
लगे है लोगो का इसके उपर से विश्वास उठता जा रहा है। इसके कई कारण हो सकते है
जैसेः- राजनीतिक कारण हो सकते है आर्थिक कारण हो सकते है। वैचारिक कारण हो सकते
है।
1.
राजनीतिक कारणः- राजनीतिक
कारण किसी भी ओपेनियन पोल को निम्नलिखित रुप से प्रभावित कर सकता है कि कोई भी
सर्वे एजेंसी जो किसी भी राजनेता के द्वारा स्थापित की गई है तो वह कितनी भी
टथस्यता बनाने कि कोशिस करेगी तो वह उसके पक्ष में कुछ न कुछ प्रतिशत झुकाव जरुर
रखेंगी तो इस तरह अब के अपेनियन पोल में इस तरह के खतरे आने लगी है जिससे कि
ओपेनियन पोल प्रभावित होने लगे है।
2. आर्थिक कारणः- किसी भी व्यवसाय को स्थापित करने के लिए पैसे कि
जरुरत होती है और सर्वे एजेंसी जैसी बड़ी कपंनी को स्थापित करने के लिए बहुत सारे
पैसे कि जरुत है तो ऐसे में अगर वह किसी भी व्यापारी या राजनेता से पैसे लेता है
तो फिर वह उसके प्रति किसी भी कंपनी मालिक का झुकाब होगा इसीलिए ओपेनियन पोल में
आर्थिक स्थिति भी बहुत बड़ा कारण होने लगी है।
3. वैचारिक कारणः- भारत में कई राजनीतिक पार्टीयां अपना चुनाव
वैचारिक रुप में लड़ती है तो ऐसे में अगर कोई सर्वे एजेंसी किसी विचार धारा से
प्रभावित है या उस सर्वे एजेंसी में काम
करने बाले लोग इस विचार धारा से प्रभावित है तो फिर उस सर्वे में आने वाले
निष्कर्ष पुरी तरह से सत्य कि ओर नहीं जा सकते है जोकि अब के ओपेनियन पोल में देखा
जा सकता है।
भीमराव अंबेडकरः- शायद हमारे संविधान-पुरुष ने यह मान लिया था कि उनकी
और उनके साथियों की कलम ने कम से कम मतदाताओं के एक ऐसे संसार की रचना करने का
रास्ता तो साफ कर ही दिया है जो अनिवार्य समानता पर आधारित होगा।
इकवालः- वोटर का किरदार ग्रहण करके इस दुनिया में जब हर हिंदुस्तानी
एक ही सफ में खड़ा होगा तो न कोई बंदा रह जाएगा नही बंदानवाज।
शोध पत्र में शोधार्थी नें ओपेनियन पोल के विश्व इतिहास और भारत के
इतिहास को दिखाने का प्रयास किया है साथ ही यह भी जानने का प्रयास किया है कि
इतनें दिनो के इतिहास में क्या क्या बदलाव आया है। शोधार्थी नें दो उदाहरण के
माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया है कि पिछले दो चुनाव के ओपेनियन पोल ओर उसके रिज्लट
में कितना अंतर हुआ है और कौन सी सर्वे एजेंसी कितनी सत्यता के साथ उस रिज्लट तक
पहुंच सकी है।
विश्व में ओपेनियन पोल-
जनमत सर्वेक्षण
जनमत सर्वेक्षण एक विषेश नमूने का प्रकार है, जिसके माध्यम से जनता की राय जानने की
कोशिश की
जाती है। इसके तहत आमतौर पर सवालों की एक श्रृंखला आयोजित की जाती है। जिसे अनुपात
या विश्वास के
अंतराल में विचारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार किया जाता है।
जनमत सर्वेक्षण का इतिहास
जनमत सर्वेक्षण का सबसे पहला उदाहरण अमेरिका से
मिलता है। वहां 1824 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में जैक्सन को अपने निकटतम
प्रतिद्वंदी जॉन
क्विंसी से 169 के अनुपात में 335 मतों से अग्रणी दिखाया गया था। यह स्थानीय
मतदाताओं के आधार पर किया गया सर्वेक्षण था। इसके तहत जैक्सन के चुनाव जीतने के बाद
धीरे-धीरे यह दुनिया के देशों में लोकप्रिय होता गया।
उसके बाद 1916 के राष्ट्रपति चुनाव में जनमत
सर्वेक्षण का आधुनिक रूप देखने को मिला। इस दौरान साहित्यिक पत्रिका डाइजेस्ट ने
जनमत सर्वेक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण किया। पत्रिका की भविष्यवाणी
बिल्कुल सटीक निकली। इसके बाद पोस्टकार्ड रिटर्न गिनती आदि के माध्यम से डाइजेस्ट
ने जनमत सर्वेक्षण का कार्य किया। इसके बाद जनमत सर्वेक्षण का दौर चल निकला। 1920, 1924, 1928 और 1932 के अमेरिकी राष्ट्रपति
चुनावों में बिल्कुल सही जनमत सर्वेक्षण किया गया। इन चुनावें में क्रमशः अमेरिकी राष्ट्र पति के पद पर वारेन
हार्डिंग, कैल्विन कूलिज, हर्बर्ट हूवर, फ्रेंकलिन रूजवेल्ट, 1920 में वारेन हार्डिंग आदि विजयी
हुए।
1936 के आम चुनाव में इसी पद्धति का उपयोग करते
हुए 23 लाख मतदाताओं के सर्वेक्षण के आधार पर जनमत सर्वेक्षण किया गया। इस चुनाव
में लोगों की सहानुभूति रिपब्लिकन उम्मीदवार रूजवेल्ट के साथ थी। इसके बाद
साहित्यिक डाइजेस्ट का इस क्षेत्र में पराभव आरंभ हो गया। इसके बाद जनमत सर्वेक्षण
की विधा में गैलप का नाम तेजी से उभरा। उन्होंने तीन बार, 1936 में, 1940, और 1944 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव
के उम्मीदवारों का बिल्कुल सटीक विश्लेषण किया। इसी वर्ष एल्मो नट फर्म ने जनमत
सर्वेक्षण का कार्य आरंभ किया। इसके बाद धीरे-धीरे जनमत सर्वेक्षण का उपयोग दुनिया
के दूसरे लोकतांत्रिक देषों में होने लगा। 1945 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुनाव
के दौरान जनमत सर्वेक्षण देखने को मिला। सर्वेक्षण में लेबर पार्टी के जीत की
भविष्यवाणी की गई थी।
जनमत सर्वेक्षण मौखिक से लेकर
प्रसंस्कृत तक
जनमत सर्वेक्षण की प्रक्रिया मौखिक से लेकर अब
वैज्ञानिक रूप में अपनाई जा रही है। दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव
से पूर्व जनमत सर्वेक्षण का सहारा लिया जाता है। हलांकि इसमें समय के साथ-साथ कई
विदु्रपताएं भी समाहित हुई है। सर्वेक्षण के लिए प्रतिक्रिया की दर में गिरावट आई
है। कई बार इसके माध्यम से चुनाव परिणामों में बदलाव करने का मामला भी प्रकाश में
आया है। कई बार जनमत सर्वेक्षण आबादी की जनसांख्यिकी को भी नहीं दर्शाते हैं।
इसलिए आम तौर पर पेशेवर नहीं माना जाता है।हाल ही में, सांख्यिकीय तरीके सीखने के लिए मॉडलिंग
और भविष्यवाणी के मतदान के इरादे चुनाव (जैसे माइक्रो ब्लॉगिंग ट्विटर के मंच पर
पदों के रूप में) सामाजिक मीडिया सामग्री का दोहन करने के लिए प्रस्तावित किया गया
है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो जनमत
सर्वेक्षण का उपयोग राजनीतिक पार्टियां भी बखूबी कर रही है। उम्मीदवारों की ताकत
जानने के लिए जनमत सर्वेक्षण किया जाता है।
जनमत सर्वेक्षण नियमन
दुनिया भर के देशों में जनमत सर्वेक्षण की
प्रक्रिया नियमन के दायरे में है। कुछ देशों में न्यायालय ने मतदाता फैसलों को
प्रभावित करने के लिए चुनाव के आसपास की अवधि के दौरान जनमत सर्वेक्षणों के
परिणामों के प्रकाशन को प्रतिबंधित किया है। उदाहरण के लिए, कनाडा में जनमत सर्वेक्षण चुनाव के
अंतिम तीन दिनों से पहले रोक दिया जाता है। हालांकि ज्यादातर पश्चिमी लोकतांत्रिक
देश चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षणों के प्रकाशन के पूरे निषेध का समर्थन नहीं करते।
उनमें से ज्यादातर देशों में प्रासंगिक पोल चुनाव के कुछ दिन पहले या घंटे पहले ऐसे
परिणाम को रोक दिया जाता है। भारत में, चुनाव आयोग नें मतदान शुरू होने से पहले 48 घंटे में यह निषिद्ध किया
गया है।
शब्द की- पोलस्टर,सेफॉलेजिस्ट, वोट स्विंग
ओपिनिय पोल की शुरुआत भारत में-
जनमत मापन या हम कहें कि जनमत सर्वेक्षण की पहली शुरुआत 1950 के दशक
में ही शुरु हो चुकी थी एरिक डिकोस्टा ने अमेरिकी संस्था अमेरकन इंस्टीटयूट ऑफ
पब्लिक ओपिनियन की तर्ज पर 1950 के दशक के प्रारंभ में ही इंस्टीट्यूट ऑफ प्बलिक
ओपिनियन (आई.आई.पी.ओ) की स्थापना की थी। डिकोस्टा पेशे से एक
अर्थशास्त्री थे जिनकी प्राथमिक रुचि उपभोक्ता से संबंधित अध्ययनों में थी। लेकिन
उन्होने भारत में आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर जनमत- सर्वेक्षण भी प्रारंभ किया।
आई.आई.पी.ओ. ने दिल्ली,पश्चिम बंगाल, और केरल मे प्रथम जर्नल मंथली पब्लिक ओपिनियन
स्टडीज(एम.पी.ओ.एस) में प्रकाशित हो चुके हैं।
1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के पूर्व अखिल भारतीय स्तर पर पहला जनमत
सर्वेक्षण कराया गया जिसके आधार पर पहली चुनावी भविष्यवाणी की गयी जो एकदम सटीक
साबित हुई।
आई.आई.पी.ओ के अतिरिक्त व्यक्तिगत स्तर पर भी चुनाव के अध्ययन के
प्रयास किये गए। वी.एम सिरसीकर ने 1967 में सम्पन्न आम चुवावों के दौरान सर्वे के
आधार पर पुणें लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का अध्ययन किया गया जिसनें बताया कि भारत
में अधिकांश लोगों का लोकतंत्र चुनावों और राजनीतिक दलों में विश्वास है। इसका एक
दिलचस्प नतीजा यह निकला कि जो लोग ज्यादा शैक्षणिक योग्यता रखते थे उनका
लोकतंत्र पर कम विश्वास था जबकि उनकी
तुलना में कम शिक्षित लोगों का लोकतंत्र
पर ज्यादा विश्वास था। और कम शिक्षित परिवारों में परिवार के सदस्यों के मतदान के
निर्णय पर परिवार के मुखिया का प्रभाव बहुत ज्यादा था जबकि ऊंची शिक्षा प्राप्त
परिवारों में यह तुलनात्मक रुप से कम था। इसके अलावा उम्मीदवार, दल और जाति-समुदाय
मतदान पर निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे और अंततः मतदाओं के
व्यवसाय, आय और उम्र मतदाताओं के मतदान-व्यवहार और रुझान को प्रभावित नहीं करते
थे।
भारत में मतदान- व्यवहार मापने की परमपरा आगे बढ़ाने का श्रेय
इल्डसवेलेड और विकासशील समाज अध्ययन पीठ(सी.एस.डी.एस) के
विद्वान बशीरुद्दीन अहमद को हैं। इन दोनों नें 1967 और 1971 में समंपंन आम चुनावों
का अखिल भारतीय स्तर पर सर्वेक्षण संचालित किया। संस्थात्मक स्तर पर पूरे भारत के
सैम्पल सर्वे पर आधारित आम चुनावों के अकादिमिक अध्ययन की शुरुआत अध्ययन पीठ
द्वारा साठ के दशक में शुरु की गयी थी। यह अध्ययन राष्ट्रीय चुनाव- अध्ययन
(एन.ई.एस) के नाम से लोकप्रिय हैं। पहला राष्ट्रीय चुनाव-अध्ययन भारतीय मतदाताओं के
राजनीतिक व्यवहार,मत और रुझान के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए 1967 में संचालित किया
गया था। परंतु इनके अध्ययनों में परोक्ष उद्धेश्यों की भी एक व्यापक श्रेणी थी जो
भारत में और भारत के बाहर लाकतांत्रिक राजनीति का अध्ययन करने वाले विधार्थियों के
लिए अत्यंत प्रासंगिक बनी हुई है। इसने चुनावों को ऐसे अवसर या खिड़की के रुप में
प्रयोग करना सिखाया जिसके माध्यम से लोकतांत्रिक राजनीति की प्रवृत्तियों और
प्रारुपों को समझा जा सकता है।
इसके बाद दूसरा राष्ट्रीय स्तर का अध्ययन 1971 के आम चुनावों के दौरान
हुआ। 1980 के लोकसभा चुनावों के दौरान अध्ययन पीठ नें अखिल भारतीय सर्वे के लिए डिजाइन तैयार किया और
इंस्टीट्य़ूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन(आई.आई.पी.ओ) दिल्ली के फील्डवर्क संचालित किया। इस
कालावधि के दौरान संचालित हुए सर्वेक्षणों की मुख्य पहचान संभाव्यता सैम्पलिंग,
गहन प्रश्नावलीयां और सख्त फील्डवर्क था। इस अध्ययन की एक प्रमुख कमी यह थी कि इस
सर्वे में महिला मतदाताओं को शामिल नहीं किया गया था। इसका कारण सर्वे के दौरान
फील्ड में आने वाली दिक्कतें तो थी ही,साथ ही उस समय यह भी माना जाता था कि महिला
पुरुष मतदाताओं के मतों के बीच में कोई विशेष अंतर नहीं होता है। हालांकि इस कमी
को बहुत जल्द दूर कर लिया गया और 1971 के राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन में महिलाओं को
भी सैम्पल में शामिल किया गया था।
पिछले एक दशक में संपंन हुए चुनावों के दौरान भारतीय मतदाताओं के बीच बड़ी
संख्या में कराये गये जनमत सर्वेक्षण इस तथ्य का प्रमाण है कि हमारे देश में
चुनावी सर्वेक्षण और सर्वेक्षण उधोग की लोकप्रियता बढ़ी हैं। वर्ष 2004 और वर्ष
2009 मे संपंन हुए पिछले दो आम चुनावों में तो चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और एग्जिट
पोल कराने के लिए भारतीय मीडिया भीषण प्रतियोगिता देखी गयी। यह होड़ अंततः इस बात
को लेकर होती है कि सम्भावित चुनावी परिणाम की सबसे सटीक भविष्यवाणी कौन कर सकता
है। पोलस्टर और सेफॉलेजिस्ट सिर्फ एक ज्योतिषी का किरदार नहीं निभाते। मसलन वे
सिर्फ इस बात की भविश्यवाणी नहीं करते कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन या राष्ट्रीय
जनतांत्रिक गठजोड़ जैसे राष्ट्रीय राजनीतिक गठबंधनों और अन्यों को कितनी सीटें
मिलेंगी, वे मतदाताओं के मतदान-व्यवहार और रुझानों की भी व्याख्या करने लगते है। वे यह भी बताने लगते है कि किन मुद्दों का चुनाव
पर कितना प्रभाव पड़ेगा।
जनमत सर्वेक्षण की लोकप्रियता अस्सी के दशक में प्रारंभ हुई जब प्रणय
रॉय ने भारतीय मतदाताओं के मिजाज को जामने में लिए चुनावों के दौरान जनमत-
सर्वेक्षण संचालित करना प्रारंभ किया। रॉय की कोशिश थी कि जनमत सर्वेक्षण संचालित
करना प्रारंभ किया। रॉय की कोशिश थी कि जनमत सर्वेक्षणों को चुनाव के अध्ययन के
लिए और सीटों की भविष्यवाणी के लिए वैज्ञानिक तरीका बनाया जाए। इसीलिए 1989 में
रॉव ने मार्केटिंग ऐंड रिसर्च ग्रुप के सहयोग के लिए एक एग्जिट पोल संचालित किया।
इसमें 77,000 मतदाताओं का मतदान केंद्रों पर वोट डाल कर बाहर आने के तुंरत बाद
साक्षात्कार किया गया था। इस सर्वे ने कांग्रेस के जीतने की भविष्यवाणी की थी जो
कमोबेश सटीक थी। वोट स्विंग एक बहुत की लोकप्रिय शब्द बन गया था जिसकी गणना पिछले
चुनाव में राजनीतिक दलो को प्राप्त वोटों की तुलना में वोटों के लाभ या हानि के
आधार पर की जाती थी इसके बाद डॉ रॉय भारत में टेलीविजन दर्शकों के बीच एक घरेलू
नाम बन गये। उनके द्वारा की गयी इस पहल को हाथों-हाथ लिया गया और 1990 के दशक में
प्रचुर मात्रा में उभरे इलेकट्रॉनिक मीडिया की सहायता से मीडिया और जनमत सर्वेक्षण
दोनो विकास के पथ पर अग्रसर हो गये। इस प्रकार मतदाताओं के मत और व्यवहार को मापने
के लिए चुनावी सर्वे और एग्जिट पोल कराना अत्यंत लोकप्रिय हो गया।
2009 के चुनाव के ओपेनियन पोल
एजेंसी
|
तारीखें
|
परिणाम
|
8 जनवरी को 15/09
|
संप्रग 215-235, राजग 165-185, दूसरों 125-155
|
|
5 मार्च 17, 2009 को
|
संप्रग 257 (कांग्रेस 144), एनडीए 184 (भाजपा 137), दूसरों 96
|
|
26 मार्च - अप्रैल 3, 2009
|
संप्रग 203 (कांग्रेस 155), एनडीए 191 (भाजपा 147), तीसरे मोर्चे के 104, चौथा मोर्चा 39
|
|
मार्च-अप्रैल
2009
|
संप्रग 234 (कांग्रेस 144), एनडीए 186 (भाजपा 140), तीसरे मोर्चे 112
|
|
मार्च 2009
|
संप्रग 201 (कांग्रेस 146), एनडीए 195 (भाजपा 138), दूसरों 147
|
|
वास्तविक
परिणाम
|
16 मई 2009
|
संप्रग 262, एनडीए 159, तीसरा मोर्चा 79
|
सीएनएन-आईबीएन - सीएसडीएस ने 8 जनवरी से 15 जनवरी 2009 तक के सर्वे के अनुसार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को 215 से
235 सीटे आने की बात कही वही राष्ट्रीय जनता दल को 165 से 185 सीट आने की बात कहीं
है। और इस संस्था नें अन्य लोगो को 125 से 155 सीट आने की बात कहीं है।
स्टार – नीलसन- ने 5 मार्च से 17 मार्च तक किये अपने सर्वे के
अनुसार इन्होने बताया कि संप्रग को 257 जिसमें कांग्रेस को 144 सीट
मिलने की बात कही गई है। वही एनडीए को 184 सीट आने
की बात कही गई है इसमें भाजपा को 137 सीट आने
की बात कह रही है। अन्य दलों को 96 सीट मिलने के आसार लग रहे है
सी वोटर – वीक- यह सर्वे मार्च अप्रैल में किया गया है जिसमें संप्रग को 234 सीट मिलने की बात कही गई थी वही कांग्रेस को
144 सीट मिलने की बात कही गई। एनडीए 186 सीट पे आने की बात कही गाई है जवकि इसमें भाजपा 140सीट जीतती नजर आ रही है। तीसरे
मोर्चे के रुप में 112 सीट मिलती नजर आ रही है।
टाइम्स ऑफ इंडिया-मार्च 2009 में किया गया सर्वे जिसमें संप्रग 201
सीट ला सकती है जिसमें कांग्रेस के पास 146 सीट आने की बात कहीं जा रही है वही
एनडीए के पास 195 सीट आने की बात कही जा रही है और अऩ्य की बात करें तो उसके पास
149 सीट आने की बात कहीं जा रही है।
निष्कर्षः- उपयुक्त के सभी आकड़ो को अगर देखे तो हम पाएंगे कि सभी
सर्वे एजेंसी संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन की सीट को सबसे ज्यादा दिखाई गई है इस
आंकड़े के अनुसार कांग्रेस की सीट सबसे ज्यादा दिखाई गई है उसके बाद अन्य की पे
पास सीटे गई। अगर हम चुनाव के रिज्लट को देखे को हम पाएंगे कि संयुक्त प्रगतिशील
गठबंधन की जीत हो गयी।
जीत के बाद संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन की सरकार-
पार्टी /
एलायंस
|
सीटें
जीती
|
सीट%
|
262
|
48.25%
|
|
बाहर से समर्थन
|
||
23
|
4.20%
|
|
21
|
3.86%
|
|
4
|
0.7%
|
|
3
|
0.55%
|
|
3
|
0.55%
|
|
कुल
|
322
|
59.4%
|
जीत के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार बनी जैसा की ओपेनियन
पोल में कहां जा रहा था। उपयुक्त सर्वे एजेंसी के सैंपल साईज में अंतर था। कुछ एक
सर्वे एजेसी को अगर हम छोड़ दे तो कोई भी पुरी तरह से सही सही सीटो को लेकर बात
नहीं कर रही थी।
नोटः- ओपेनियन पोल और चुनाव नतीजे आने के वाद अगर
हम सीटों की स्थिति को देखे तो दोनो के बीच में अंतर साफ तौर से नजर आ रहा है अगर
हम कुछ एक सर्वे एजेंसी को छोड़ दे तो कोई भी सर्वे एजेंसी चुनाव नतीजे के आस पास
पहुंचती नजर नहीं आ रही है।
2014 के लोक सभा चुनाव के सर्वे एजेंसी का ओपेनियन पोल
When
conducted
|
Polling
organisation/Agency
|
Sample
size
|
|||||
UPA
|
NDA
|
Left
|
Other
|
||||
Jan–Mar
2013
|
Times
Now-CVoter
|
No
sample size provided
|
128
|
184
|
–
|
–
|
|
Apr–May
2013
|
Headlines
Today-CVoter
|
120,000
|
209
(without Modi)
155(with Modi) |
179(without Modi)
220 (with Modi) |
–
|
–
|
|
May
2013
|
ABP
News-Nielsen
|
33,408
|
136
|
206
|
–
|
–
|
|
Jul
2013
|
The
Week – Hansa Research
|
No
sample size provided
|
184
|
197
|
–
|
162
|
|
Jul
2013
|
CNN-IBN
and The Hindu by CSDS
|
19,062
|
149–157
|
172–180
|
–
|
208–224
|
|
Jul
2013
|
Times
Now-India Today-CVoter
|
36,914
|
134 (INC
119)
|
156
(BJP 131)
|
–
|
–
|
|
Aug–Oct
2013
|
Times
Now-India TV-CVoter
|
24,284
|
117 (INC
102)
|
186 (BJP
162)
|
–
|
240
|
|
Dec
2013 – Jan 2014
|
India
Today-CVoter
|
21,792
|
103 (INC
91)
|
212 (BJP
188)
|
–
|
228
|
|
Dec
2013 – Jan 2014
|
ABP
News-Nielsen
|
64,006
|
101 (INC
81)
|
226
(BJP 210)
|
–
|
216
|
|
Jan
2014
|
CNN-IBN-Lokniti-CSDS
|
18,59
|
107 –
127
(INC 92 – 108) |
211 –
231
(BJP 192 – 210) |
–
|
205
|
|
Jan–Feb
2014
|
Times
Now-India TV-CVoter
|
14,000
|
101 (INC
89)
|
227
(BJP 202)
|
–
|
215
|
|
Feb
2014
|
ABP
News-Nielsen
|
29,000
|
92
|
236
|
29
|
186
|
|
Feb
2014
|
CNN-IBN-Lokniti-CSDS
|
29,000
|
119 –
139
(INC 94 – 110) |
212 –
232
(BJP 193 – 213) |
105–193
|
||
March
2014
|
NDTV-
Hansa Research
|
46,571
|
128
|
230
|
55
|
130
|
|
March
2014
|
CNN-IBN-Lokniti-CSDS
|
20,957
|
111–123
|
234–246
|
174–198
|
||
April
2014
|
NDTV-
Hansa Research
|
24,000
|
111 (INC
92)
|
275
(BJP 226)
|
157
|
शोध प्रविधि- निदर्शन पद्धति का प्रयोग किया गया है जिसमें
इन्होने भारत के सभी राज्यो को सर्वे के रुप में चुना है। और सैंपलिंग के रुप में रैंडम
सैंपलिंग सर्वे का प्रयोग किया गया है।
टुल- के रुप में इन्होनें साक्षात्कार और बात-चीत का प्रयोग किया है,
जहां पे महिला वोटर थी वहां वे महिलाओं ने जाकर बात किया है और जानने का प्रयास
किया है कि किन किन आधार पे आप वोट दे रही है या किस प्रत्यासी को किस रुप में देख
रही है।
उपयुक्त चार्ट में Times Now-CVoter सर्वे एजेंसी ने जनवरी- मार्च तक किए सर्वे में इन्होने कहां कि NDA को 184 तथा UPA को 128 सीट आती नजर आ
रही है। इन महिने के ओपेनियन पोल में सैंपल साईज को नहीं दिखाया गया है। और इसमें
अन्य के रुप में सीटो के बटवारे को नहीं दिखाया गया है।
अप्रैल-मई-2013
उपयुक्त चार्ट अप्रैल से मई 2013 तक के ओपिनियन सर्वे है जिसका सैंपल
साइज 120,000 हैं, इस ओपिनियन पोल में मोदी और बिना मोदी का सर्वे किया गया है
जिसमें मोदी के साथ रख कर अगर NDA चुनाव लड़ती है तो 209 और अगर मोदी साथ में रहते है तो
155 सीट आने की बात कही गई थी। वही अगर UPA को देखे तो मोदी को लेकर अगर UPA चुनाव लड़ती है तो 179 सीट आने की उम्मीद जताई
गई अगर मोदी को लेकर चुनाव में UPA आती है तो 220 सीट आने की उम्मीद जताई गई है। मतलब साफ
है कि अप्रैल से मई के सर्वे में मोदी को चाहने बाले कम थे समय के अनुसार मोदी का
प्रभाव बढ़ा है।
मई
2013
उपयुक्त चार्ट का सर्वे मई 2013 में किया गया है जिसका सैंपल साइज
33,408 है तथा इसे ABP News-Nielsen कराया है इस सर्वे में NDA को 206 सीट मिलती हुई
दिखाई गई है जबकि वही UPA को 136 सीट मिलती हुई दिखाई गयी है।
जुलाई 2013
उपयुक्त चार्ट में UPA,NDA,OTHER
में सीटों को लेकर काभी ज्यादा अंतर नहीं है अगर
हम चार्ट को देखे तो 10-20 सीट के आस पास कम या ज्यादा दिखा रहे है। इस महिने के
चार्ट के आधार पर हम कह सकते है कि अगर इस समय चुनाव हो गया होता तो अन्य के हाथ
में पुरे चुनाव की चाभी होती। इस सर्वे में सैंपल साइज नहीं दिखाया गया है।
जुलाई 2013
उपुयक्त चार्ट में UPA,NDA,OTHER
में सीटो को लेकर एक सही
मान नहीं बताया गया है इसमे सबसे ज्यादा सीट अन्य को आता दिख रहा है इससे यह
निष्कर्ष निकल रहा है कि अगर इस समय चुनाव होता तो अन्य के पास पुरे चुनाव की चाभी
होती और अन्य जिसको चाहती उसकी सरकार बना सकती थी।
जुलाई-2013
उपयुक्त चार्ट TIMES NOW- INDIA TODAY-C VOTER का सर्वे है जिसमें NDA को 156 सीट दिखाई जा रही है इसमें
बीजेपी को 131 सीट मिलती दिखाई गई है। वही UPA को 134 सीट मिलती दिखाई
गई है इसमें कांग्रेस को 119 सीट मिलती दिखाई गई है। यह 36,914 लोगो पर किए गए
सर्वे के आधार पर कहां जा रहा है।
नोटः- जुलाई महीने में तीन सर्वे किए गए है
जिसमें तीन अलग अलग सर्वे एजेंसी ने सर्वे किया है इसमें से दो सर्वे एजेंसी NDA को जीत दिखा रही है वही
एक एजेंसी अन्य को जीत दिखा रही है। इस सर्वे के अनुसार हम कह सकते है कि समय के
अनुसार लोगो के मत बदलते नजर आ रहे है।
अगस्त-
अक्टुवर 2013
अगस्त-अक्टुवर 2013 में TIMES NOW- INDIA TV- C VOTER के द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार NDA को 186 सीट मिलती दिखाई
गई है जिसमें बीजेपी 162 सीट मिलने की बात कही जा रही है। वहीं UPA को 117 सीट मिलती दिखाई
गई है जिसमें कांग्रेस को 102 सीट मिलती दिखाई दे रही है। इसका सैंपल साईज 24,284
है।
दिसंबर 2013- जनवरी 2014
उपयुक्त चार्ट दिसंबर 2013 से जनवरी 2014 तक
के सर्वे के अनुसार डाटा है इसमें UPA को 103 सीट मिल रही है
जबकि इसी में कांग्रेस के पास 91 सीट मिलती दिखाई दे रही है। वही अगर हम NDA की बात करे तो हम पाते है कि 212 सीट मिलने की
बात कहीं जा रही है जो को UPA के पुरे सीट से दुगने से भी ज्यादा है जिसमें बीजेपी के
पास 188 सीट मिलने की बात कही गई है। जैसे जैसे चुनाव नजदिक आता गया बीजेपी की सीट
संख्या बढ़ती चली गई
इसके कई कारण हो सकते है हमने भूमिका में इन
सभी कारणों को बताने का प्रयास किया है।
उपयुक्त चार्ट में सैंपल साईज 64,006 लिया
गया है कहां जाता है कि ओपिनियन पोल में जितना अधिक सैंपल साईज होता है उसकी
सत्यता उतनी अधिक होती है अगर हम इस चार्ट को देखे तो इसमें NDA को 226 सीट मिल रही है जिसमें
बीजेपी के पास 210 सीट मिल रही है वही अगर हम UPA को देखे तो इसमें 101
सीट मिल रही है तथा कांग्रेस के पास 81 सीट मिलती नजर आ ही है और अन्य के पास भी
सीटों का एक बहुत बड़ा पहाड़ खड़ा है अगर इस समय चुनाव करा दिया जाता तो NDA अन्य के साथ मिल कर
सरकार बना सकती थी। इस सर्वे अनुसार।
जनवरी-2014
उपयुक्त चार्ट में UAP को 211 से 231 सीट तक
आने की कहीं जा रही है वही अगर हम NDA को देखे तो हम पाएगे
इसमें 107 से 127 सीट तक आने की बात कही जा रही है जिसमें से कांग्रेस के पास 92
से लेकर 108 सीट आने के बात हो रही है और अन्य केपास 205 सीट आने की बात हो रही है
हमने पिछले महिने के सर्वे में भी देखा था कि अन्य के पास बहुत ही ज्यादा सीट जाती
नजर आ रही थी जनवरी 2014 के पहले महिने में ही अन्य के पास सबसे ज्यादा सीट जाती
नजर आ रही है।
फरवरी-2014
उपयुक्त आकड़ो को देखे तो हम पाते है कि इस
महिने में एक नई पार्टी इस चुनावी आंकड़ो में अपनी दस्तक दी है लेफ्ट के रुप में।
वैसे अभी तक NDA बढ़त बनाए हुए है इसका सैंपल साइज 29,000 है। इस चार्ट के अनुसार UPA कि स्थिति बहुत ही बुरी स्थिति होने बाली है यह
100 का आकंड़ा भी पार करती नहीं दिखाई दे रही है।
मार्च-2014
उपयुक्त चार्ट का सैंपल साइज 46,571 है इस
चार्ट के अऩुसार मार्च माह में पिछले महिने के UPA के सीटो में बढ़ोतरी है
पर NDA के सीटो में किसी प्रकार का कोई भी अतंर नजर नहीं आ रहा है सीटे घटी बढ़ी
है तो सिर्फ अन्य और लेफ्ट की अगर इस समय चुनाव हो तो NDA एक बड़ी पार्टी के रुप
में उभर कर सामने आएगी।
अप्रैल-2014
उपयुक्त चार्ट के अनुसार NDA के पास 275 सीट आ रही है
वही UPA के पास 111 सीट आ रही है और अऩ्य के पास 175 सीट। NDA में BJP के पास 226 सीट बताई जा
रही है जबकि UPA में INC के पास 92 सीट मिलती नजर आ रही है। यह चुनाव के कुछ महिने पहले का आंकड़ा
है।
2014 लोकसभा चुनाव के परिणाम
National Democratic Alliance
Seats: 337 |
Bharatiya Janata Party
|
280
|
Shiv Sena
|
18
|
|
Telugu Desam Party
|
16
|
|
Lok Jan Shakti Party
|
6
|
|
Shiromani Akali Dal
|
4
|
|
Rashtriya Lok Samta Party
|
3
|
|
Jammu and Kashmir Peoples Democratic Party
|
3
|
|
Apna Dal
|
2
|
|
All India N.R. Congress
|
1
|
|
Nagaland Peoples Front
|
1
|
|
National Peoples Party
|
1
|
|
Pattali Makkal Katchi
|
1
|
|
Swabhimani Paksha
|
1
|
2014 लोकसभा चुनाव
परिणाम
लोकसभा चुनाव 2014 का परिणाम जब आया तो सब को चकित कर देने बाला था
जितने अनुमान लगाए जा रहे थे उससे कही ज्यादा निकला । NDA पूर्ण बहुतम आयी 337 सीट
लेकर। सबसे ज्यादा सीट BJP (280) सीट मिला उसके बाद शिवसेना 18, फिर टीडीपी 16 इसी
तरह इसमें 13 पार्टीयो नें मिल कर सरकार बनाई।
अगर हम चुनाव के परिणाम को देखे को हम पाते है कि किसी एक पार्टी (
जैसे कि बीजेपी की अपनी सीट को लेकर हंसा ग्रुप एनडीटीवी का सर्वे उस जादुई आंकड़े
तक पहुंचते नजर आ रहा है। ) अगर हम सभी उपयुक्त सर्वे एजेंसी को देखे तो वह कम
ज्यादा सभी एजेंसीया NDA की सीट को ज्यादा बता रही थी और चुनाव परिणाम में भी NDA की सीट सबसे ज्यादा आयी है।
तो इस तरह से हम कह सकते है कि मीडिया द्वारा
किया गया सर्वे ज्यादा तर मामलो में सही होता है जैसा कि हमने दो लोक सभा चुनाव को
देखा जिसमें हमने देखा कि जिस पार्टी को सबसे ज्यादा सीटे आ रही थी चुनाव नतीजों
के बाद उसी पार्टी की जीत हुई।
निष्कर्षः-
उपयुक्त में दो लोकसभा चुनाव के ओपेनियन पोल
और उसके रिजल्ट को देखा जिसमें हमने पाया की जिस पार्टी को सबसे ज्यादा सीट मिल
रही थी उसी पार्टी की जीत हुई इसमें अंतर यह हो रहा था कि सीटों कि संख्या को लेकर
एक दुसरे में अंतर दिख रहा है उसके कई कारण हो सकते है जिसमें से उपयुक्त भूमिका
में दिखाने का प्रयास किया है, साथ ही हम अगर सर्वे एजेंसी के सैंपल को देखे तो
इसमें भी अंतर है तो उसके रिजल्ट में भी अंतर होगा। तो इस तरह से हम कह सकते है कि
ओपेनियन पोल आज भी जनता के मन को पढ़ने में कारगर है। हम अगर उपयुक्त में किये गए
सर्वे जिसमें सर्वे एजेंसी नें अपने अपने हिसाव से सर्वे किया है उसमें अगर हम
महिने बार से देखे तो हम पाते है कि NDA की सीटों में ज्यादा उतार चढ़ाव देखने को नहीं
मिला। सबसे ज्यादा उतार चढ़ाव देखने को UPA और अन्य कि सीटो के साथ
रहा। और आखिरी के दो महिनो में लेफ्ट के आ जाने के बाद से UPA के सीटो में और कमी
देखने को मिली और जब बाद में चुनाव के नतीजे सामने आए तो वह और भी चौकाने बाले थे
क्यो कि उसने ओपिनियन पोल से अलग एक अपना पोल दिया जिसने सब को चौका दिया और आखिर
कार NDA की सरकार बन गई।
संदर्भ ग्रंथ
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और मानविकी की पूर्व-समीक्षित अर्धवार्षिक पत्रिका सन-जनवरी-जून,2014।
2. मंडल,दिलीप(2011)राजकमल प्रकाशन प्रा.लि.।
3. राजगढ़िया,विष्णु(2008)जनसंचार सिद्धांत और
अनुप्रयोग,राधाकृष्ण नयी दिल्ली पटना इलाहावाद।
4. आहुजा,राम(2014)सामाजिक सर्वेक्षण एवं
अनुसंधान,रावत पब्लिकेशन्स।
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Opinion_polling_for_the_Indian_general_election,_2014
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_general_election,_2009