प्लास्टिक ने हमारे जीवन को कितना सहज बना
दिया है। प्लास्टिक की बोतलें जो नहीं टूटतीं, प्लास्टिक की पॉलीथिन जो
नहीं फटतीं, प्लास्टिक के अन्य सामान जो लंबे समय तक चलते हैं और आसानी से
खराब नहीं होते। इससे पैसों की बचत तो होती ही है, हमारा जीवन भी सुगम बन
जाता है। लेकिन, जब निर्भरता ज्यादा बढ़ जाती है तो यही प्लास्टिक
जाने-अंजाने हमारा दुश्मन बन जाता है।
अमूमन दुनिया में हर सेकेंड आठ टन
प्लास्टिक के सामान बनते हैं और इससे निकला कम-से-कम साठ लाख टन प्लास्टिक
कचरा हर साल समुद्रों में पहुँच जाता है। प्लास्टिक कचरे का केवल पन्द्रह
फीसदी हिस्सा पृथ्वी की सतह यानी जमीन पर बचा रह पाता है। बाकी सारा कचरा
समुद्र में जाकर जमा हो जाता है। भारत के शहरों की बात करें तो देश के साठ
बड़े शहर रोजाना 3,500 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा निकाल रहे हैं। 2013-2014
के दौरान देश में 1.1 करोड़ टन प्लास्टिक की खपत हुई, जिसके आधार पर ये
जानकारी सामने आई कि दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, कोलकाता और हैदराबाद जैसे
बड़े शहर सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा निकाल रहे हैं।
ये प्लास्टिक कचरा मानव से लेकर
पशु-पक्षियों तक के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। लोगों में तरह-तरह की
बीमारियाँ फैल रही हैं, जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है और भूगर्भीय
जलस्रोत दूषित हो रहे हैं। प्लास्टिक के ज्यादा सम्पर्क में रहने से लोगों
के खून में थैलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है। इससे गर्भवती महिलाओं के शिशु
का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुँचता है। प्लास्टिक
उत्पादों में प्रयोग होने वाला बिस्फेनाल रसायन शरीर में मधुमेह और लिवर
एंजाइम को असंतुलित कर देता है।
प्लास्टिक से बने लन्च बॉक्स, पानी की बोतल
और भोजन को गरम और ताजा रखने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली पतली
प्लास्टिक फॉइल (क्लिंज फिल्म) में 175 से ज्यादा दूषित घटक होते हैं, जो
बीमार करने के लिए जिम्मेदार हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि अगर भोजन गरम हो
या उसे गरम किया जाना हो तो ऐसे खाने को प्लास्टिक में बन्द करने से या
प्लास्टिक के टिफिन में रखने से दूषित रसायन खाने में चले जाते हैं। इससे
कैंसर और भ्रूण के विकास में बाधा समेत कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
प्लास्टिक इंसानों के साथ-साथ दूसरे जीवों
के लिए भी एक बड़ी समस्या बन चुका है। इसे चबाने से आए दिन गायों की मौत हो
रही है। उनकी प्रजनन क्षमता पर भी इसका असर पड़ रहा है। प्लास्टिक का असर
पशुओं के दूध उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। प्लास्टिक के
बढ़ते ढेर जमीनों को निगल रहे हैं। हरियाली खत्म हो रही है और उसकी जगह
चारों ओर प्लास्टिक ही प्लास्टिक नजर आ रहे हैं। यहाँ तक कि नष्ट किए जाने
के बाद भी इससे जुड़ी समस्याएं दूर नहीं होतीं। उदाहरण के तौर पर,
प्लास्टिक के सबसे प्रचलित रूप यानि पॉलीथिन का कचरा जलाने से कार्बन
डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और डाइऑक्सींस जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित
होती हैं जिनसे साँस, त्वचा आदि से सम्बन्धित बीमारियाँ होने की आशंका बढ़
जाती है।
जब वैज्ञानिक अलेक्जेंडर पार्किस ने 1862
में प्लास्टिक को धातु के बेहतरीन विकल्प के तौर पर पेश किया था तब
उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनका आविष्कार इस कदर लोकप्रिय हो जाएगा। आज
प्लास्टिक ने हर क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा लिया है। खिलौने, दवाईयां,
रसोईघर, स्कूल, बाजार हर ओर प्लास्टिक का साम्राज्य फैला हुआ दिखाई देता
है। एक तरह से कहें तो प्लास्टिक ने हमारे वजूद को चारों ओर से घेर लिया
है।
दरअसल, हम सब प्लास्टिक के संसार में रह
रहे हैं। हमारे चारों ओर प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं। प्लास्टिक ने हमारी
भावनाओं को भी प्लास्टिकमय कर दिया है। तभी तो इस खतरे की ओर से हम सब
आँखें मूंदें बैठे हुए हैं। प्लास्टिक के आसानी से नष्ट नहीं होने की
खासियत ही आज हमारी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। अगर हम सबने इस समस्या का
जल्द ही कोई हल नहीं निकाला तो ये एक ऐसी विभीषिका का रूप ले लेगी जिसका
परिणाम हमारी आने वाली नस्लों को भुगतना पड़ेगा।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह