कला से कलाबाजार तक

कहते है कला एक पुजा है आराधना है उसे साधना से प्राप्त किया जाता है और विना साधना के हम उसे प्राप्त नही कर सकते है।यह सही भी है जितने भी कला है चाहे वह फिल्म से हो खिलाड़ी हो संगीत से हो गीत से हो सब न सेबा कि साधना कि अपने कला की तब जाकर वह आज इस मुकाम तक आये जिसमें वे संस्कृति को कोई महत्व दिये विना आज वे अपने आप को सब को छोड़ कर सबसे ऊपर जाना चाहते है। अपनी कला को लोगो के सम्मुख प्रस्तुत करने में अपने सभी तरह के गुण को अपनाते है चाहे इसके लिए कुछ भी करना करे इससे उन्हे कुछ भी फर्क नही पड़ता है। आज के जमाने में विज्ञापण को देखना ही दूर्लभ हो गया है जिस तरह से पैसे की होड़ में हमारे कला के पुजारी अपनी कला को दिखा रहे है जैसे लगता है कि पैसा ही हमारी संस्कृति है और अगर पैसे न हो तो हम जिये ही नही हमारी संस्कृति भी है जिसके अंदर हमें रहना है हमारा भारत कभी जगत गुरु रहा हैतो इन्ही संस्कृतियों के बजह से हम विश्व में अपनी पहचाहन बना रहे है उसमें कभी यह भी एक  अहम रौल निभाता था मगर आज जिस-तरह से पैसे के चक्कर में आकर हमारे फिल्मी हिरो हो या हिराोईन हो यौ हमारे गीतकार हो सब ने अपने स्तर को गिराया है और अपने समाज को कलंकित किया है फिल्म के निर्देशक भी कहा पिछ रहने बाले थे उन्होने भी अपने फिल्मों हॉट सिन डाल कर लोगो को अपनी ओर आकर्शित करने का प्रयास करते है। अभी हाल में कुछ दिन पहले सिनेमा हॉल में फिल्म देखने गया था दोस्तो के साथ सिनेमा हॉल में एक परिवार आयी हुई थी जो की हमारे समान के सीट पे बैठी थी उस फिल्म में  एसे ऐसे सीन दिखाया गया कि वह आधी पिक्चर देखी और चली गयी यह कहते जा रहे थे कि अब मत कहना फिल्म में जाना है अगर आना है तो अकेले आना तो इस तरह से आज सिनेमा हॉल से परिवार गायव होता जा रहा है और युगल जोड़ी का लव पंवाईट वन गया है। जो कभी समाज को एक दिशा देने का काम करता था आज वह देश को एक नयी दिशा दे रहा है जो पाश्चात सभ्यता को पुरी तरह से सिनेमा के माध्यम से हमारे निजी जीवन में हावी होता जा रहा है। हमें फिर से इस दिशा में सोंचना होगा कि हम अपने समाज को अपने देश को किस दिशा में ले जाना चाहते है क्योंकि सिनेमा हमारे समाज का दर्पन है और इस तरह से पैसे को लेकर कला का व्यापार समाज को बुरी तरह से अपने आगोश में ले लेगा और हम हाथ पर हाथ धर कर बैठे रह जायेगे। हमें इस तरह के विज्ञापन और फिल्म से बचना होगा इससे हमारे बच्चो और आने वाली पिढी पर बुरा असर पड़ेगा तब कही हमारी आने वाली पिढी यह कह कर हंसेगी की हमारा देश कभी इस लिये भी जाना जाता था। हमें पानी की तरह अपनी संस्कृति को भी बचाना होगा। 

ratnasen

मै भारत देश का एक जिम्मेदार नागरिक हूं. तमाम जिम्मेदारी को समझने की कोशिश कर रहा हूं. देश की सेवा के लिए पहले परिवार फिर समाज की सेवा करना चाहता हूं. इसी कड़ी में लगातार आगे बढ़ रहा हूं. बुद्ध को अपना आदर्श मानता हूं

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