गांधी और वर्धा के लोग (सेलू,देवली,करंजा,आष्टी,आर्वी)


एक परियाोजना कार्य के लिए इन तहसीलो में जाना हुआ....इन तहसीलो में घुमते हुए जो हमें महसुस हुआ वो मै निचे आपको बताउंगा उससे पहले पहले कुछ बता दूं कि हम आठ-नौ लोगो कि टीम इस परियोजना कार्य में काम कर रही थी हम सब एम.ए,एम.फिल,पी.एच डी के छात्र थे .....हमें इन तहसील के लोगो से बात करना था और गांधी के विचारों के लेकर कुछ सबाल भरवाने थे अब बात इस समय के मौसम की मौसम तो मौसम होता है उसमें में वर्धा का क्या कहना खैर गर्मी बहुत थी फिर भी हमलोग अपने परियोजना कार्य में लगे रहे। अब बात शुरु होती है परियोजना कार्य के दौरान क्या क्या निकल कर सामने आया जब लोगो से यह पुछा गया कि आपके मन में गांधी के लेकर क्या विचार है.....वही से वो मराठी हिंदी में बोलना शुरु करते है कि गांधी नें वर्धा के लिए क्या किया कुछ भी नहीं एक फैक्टरी भी लगने नहीं दी प्रदुषण के नाम पर हमारे बच्चे कहां जाएंगे हमारे यहां वेरोजगारी कितनी बढ़ गई है उसने कुछ नहीं दारु बंद करा दी इससे क्या फायदा हुआ आज भी तो लोग दारु पिते है अब तो हम कहें कि और भी ज्यादा दारु पिते है पहले कि अपेक्षा और मंहगी भी दारु मिलती है इन लोगो नें कहां कि गांधी को ये सब नहीं करना चाहिए था इन्होनें सब गलत किया है हमारे साथ। फिर मैनें पुछा कि गांधी के विचारों के लेकर आपके मन में क्या लगता है आज अगर गांधी होते तो भ्रष्टाचार कम हो जाता बेरोजगारी कम हो गई होती या प्रदुषण कम होता .....उन्होंने कहां कि उनके समय में कम था क्या कुछ जो आज गांधी होते तो ये सब नहीं होता। हां मै मानता हूं कि गांधी के रहने से एक फायदा हूंआ है कि वर्धा का नाम विश्वपटल पर आया है लोग गांधी को जानना चाहते है तो सेवाग्राम में आते है वही से घुमते है और चले जाते है। कुटीर उद्धोग के बारे में इनका कहना है कि अब कहां रह गया है और रहे भी क्यो उससे कितना मुनाफा होता है लोगो को उसका सही पैसा भी तो नहीं मिलता है तो क्यो कोई छोटे उद्धोगो के साथ काम करें । गांधी अपने जीवन का एक लंबा समय यहां जरुर बिताया है पर वो जिस समाजिक चेतना कि बात करते थे वो अब नहीं है हां उस समय में रहा होगा जब गांधी देश के लिए लड़ रहे थे अब तो समय वो नहीं है हम आजादी के इतने दिनो के बाद भी उन्ही सब मुल भुत समस्याओं के लेकर सबाल करते है । यहां आज तक किसानो कि समस्या को खत्म नहीं कर पाई है सरकार न ही गांधी के विचार तो कैसे हम कहें कि यहां पर गांधी आए थे। आज भी यहां सबसे ज्यादा किसान खेती में आत्महत्या करते है ऐसी बात नहीं है कि वो पढ़े लिखे नहीं है उनके पास ज्ञान कि कमी है पर फिर भी वो मौसम और सरकार कि योजना के बजह से कछ नहीं कर पाते है उनके पास दुसरा कोई साधन नहीं है कि वो अपनी खेती से साथ साथ कुछ इऔर भी कर सके । एक बड़े किसान से बात हो रही थी तो वो कह रहे थे कि मै फूलो कि खेती करता हूं अब इतनी गर्मी पड़ रही है मेरी खेती खराब हो रही है मेरे पास कोई दुसरा उपाय नहीं है कि मै उससे कैसे बच सकुं वो कहते है कि दिन भर शहर में रहता हूं शाम को घर चला जाता हूं और चुप चाप खा कर सो जाता हूं अब यही दिनचर्या हो गई है हमलोगो कि......
वही अगर दुसरे नजर से देखे तो सरकार का आकड़ा और NGO का मामना है कि वर्धा में जो फैक्टरियां लगी है उससे वर्धा के तापमान में 2 से 3 प्रतिशत की वृद्दी हुई है तो ये भी कारण सामने आ रहा है कि कैसे इन सब समस्याओं को दुर किया जाए। समाज कि समस्याओं को दुर करने के लिए कई बार तो लगता है कि गांधी बहुत सही आदमी थे और उन्होंने जिन चीजों कि बात कही है वो सब सही है फिर जब आप उन क्षेत्रों में जाकर देंखेगे तो नजारा कुछ और ही नजर आएगा ।

ratnasen

मै भारत देश का एक जिम्मेदार नागरिक हूं. तमाम जिम्मेदारी को समझने की कोशिश कर रहा हूं. देश की सेवा के लिए पहले परिवार फिर समाज की सेवा करना चाहता हूं. इसी कड़ी में लगातार आगे बढ़ रहा हूं. बुद्ध को अपना आदर्श मानता हूं

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