कहानियां कहना ना केवल एक कला है बल्कि ये
बच्चों के कोरे मन में संस्कार, शिष्टाचार और अच्छाई के बीज बोने का
माध्यम भी है। ये कहना है डॉ. सीता मुखोपाध्याय का। एमबीबीएस-एमडी डॉ. सीता
मुखोपाध्याय पटना के प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. बी. मुखोपाध्याय की
बहू और “मुखोपाध्याय स्टोरी टेलिंग लाइब्रेरी” की संस्थापिका हैं। उनके पति
डॉ. जॉन मुखोपाध्याय भी पटना के अत्यन्त प्रतिष्ठित हड्डी रोग विशेषज्ञ
हैं।
“मुखोपाध्याय स्टोरी टेलिंग लाइब्रेरी”
पटना के सैदपुर में स्थित एक ऐसी पाठशाला है जहां हर रविवार को बच्चे
कहानियों के मार्फ़त दुनिया-जहान को जानते हैं। इनमें 5 साल की उम्र से लेकर
18 साल तक के बच्चे शामिल हैं। “हम बच्चे नादान बहुत हैं… नटखट हैं… शैतान
बहुत हैं… भले नहीं मालूम रास्ता… लक्ष्य मगर सर्वोच्च शिखर है…” इस
प्रार्थना के साथ पाठशाला की शुरुआत होती है। दो घंटे तक यहां कहानियां ही
कहानियां होती हैं और उन कहानियों के बीच होती हैं डॉ. सीता मुखोपाध्याय और
उनकी पाठशाला के सौ से ज्यादा बच्चे। इस पाठशाला में प्रेमचंद, रेणु,
दिनकर, रस्किन बांड, अब्राहम लिंकन, पटना शहर का इतिहास, यहां स्थित
स्मारकों की ऐतिहासिक कहानियां तथा देश के अन्य शहरों की कहानियों के
साथ-साथ भौतिकी, जीवविज्ञान, रसायनशास्त्र और भूगोल जैसे विषयों की जानकारी
भी बच्चों को कहानियों के माध्यम से दी जाती है।
शौक ने लिया विस्तार
अपने दोनों बेटों को कहानियां
सुनाते-सुनाते डॉ. सीता मुखोपाध्याय का ये शौक विस्तार लेता गया। जब बेटे
बड़े हो गए और बाहर चले गए तब डॉ. सीता मुखोपाध्याय को कहानियों की पाठशाला
खोलने का विचार आया। 11 साल पहले अधिकतर लोगों ने उनसे इस विचार को छोड़
देने को कहा। लेकिन उनके पति डॉ. जॉन मुखोपाध्याय और उनके 80 वर्षीय
बुजुर्ग पड़ोसी और ससुर के मित्र श्री मोतीलाल गुप्ता ने उनका मनोबल बढ़ाया
और तब जाकर इस पाठशाला की शुरुआत हुई। शुरू में तो लोगों ने यहां अपने
बच्चों को भेजने में आनाकानी की। लेकिन आज यहां डेढ़ सौ के करीब बच्चे
पढ़ने आते हैं।
2004 से चल रही है पाठशाला
2004 के सितम्बर में शिक्षक दिवस के अवसर
पर डॉ. सीता मुखोपाध्याय ने अपने सहयोगियों के साथ पहली मीटिंग की और
अक्टूबर 2004 से पाठशाला लगनी शुरू हो गई। यह बिहार की एकमात्र स्टोरी
टेलिंग लाइब्रेरी है। यहां बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। यहां आने
वाले बच्चों में डॉन बॉस्को, डीपीएस जैसे प्रतिष्ठित स्कूलों के बच्चे हैं
तो दूसरी ओर आस-पास के झुग्गी-झोपड़ी और गोलगप्पे की दुकान चलाने वालों के
बच्चे भी शामिल हैँ। यहां बच्चों को पेंटिंग और क्राफ्ट बनाना भी सिखाया
जाता है और इन सबके लिए बच्चों को सामान डॉ. सीता मुखोपाध्याय खुद उपलब्ध
करवाती हैं। बच्चों से किसी प्रकार की कोई फीस नहीं ली जाती है। लाइब्रेरी
में बच्चों के लिए करीब 2 हजार से अधिक कहानियों की किताबें हैं।
कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता को मिले पंख
यहां आने वाले बच्चों की कल्पनाशक्ति और
रचनात्मकता में गजब का निखार आया है। इनमें से कई बच्चे बहुत अच्छी
कहानियां लिखते हैं। सालाना और विशेष मौकों पर आयोजित कार्यक्रमों में
बच्चे खुद अपनी कहानियों पर नाटक पेश करते हैं। यहां के कई बच्चों का निफ्ट
और आईआईटी में सेलेक्शन हो गया है। फिर भी समय मिलने पर वो यहां आना नहीं
भूलते। वहीं यहां बाल साहित्यकार सुभद्रा सेन गुप्ता, यूएस की हीदर वेब,
उर्मिला कौल जैसी मशहूर शख्सियतें भी आ चुकी हैं।
नहीं दिखता कोई प्रचार
“मुखोपाध्याय स्टोरी टेलिंग लाइब्रेरी” का
कहीं भी ना तो कोई बोर्ड दिखता है और ना ही कहीं कोई प्रचार। डॉ.
मुखोपाध्याय का कहना है कि बच्चों के अभिभावकों के मन में लाइम लाईट में
आने की इच्छा आ जाती है और वो बेवजह बच्चों पर प्रेशर बनाने लगते हैं।
इसीलिए प्रचार से हम कोसों दूर रहते हैं। ऐसे में बच्चों को इस पाठशाला के
बारे में कैसे पता चलता है ये सवाल उठना लाजिमी था। इसके जवाब में डॉ. सीता
मुखोपाध्याय ने बहुत सरलता से बताया कि जो बच्चे यहां आते हैं वो ही इस
पाठशाला के बारे में अपने दोस्तों को बताते हैं और इस तरह से नये बच्चे
जुड़ते चले जाते हैं।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह